भारत के सैंकड़ों छोटे- छोटे गाँव व कस्बे, जहाँ पर रहने वाली हजारों लड़कियाँ पढ़ - लिखकर बहुत कुछ बनना चाहती हंै लेकिन पारिवारिक स्थिति इससे काफी अलग है। घर की ढेरों मजबूरियां व माँ-बाप की बंदिशंे उसके स्कूल की तरफ बढ़ते कदमों को रोक देती हैं। मां कहती है, 'अगर स्कूल चली गई तो घर का काम कौन करेगा? और फिर पढ़ लिखकर करेगी भी क्या? वैसे भी एक न एक दिन इसे ससुराल जाना है।'
कुछ ऐसा ही हाल सोनू का है। पढ़ने-लिखने में विशेष रुचि होने के बाद भी स्कूल जाना उसके लिए एक सपना ही है। मां - बाप स्कूल के समय उसे मजदूरी करने भेज देते हैं। पिता कहता है, 'अगर कमाएगा नहीं तो खायेंगे क्या? घर चलाने के लिए पैसे भी तो चाहिए, इसलिए अच्छा यही है सोनू अभी से वह काम करे जो उसे आगे करना है।'
ऐसे ढेरों उदाहरण हैं हमारे समाज के। सोनू जैसे न जाने कितने बच्चे स्कूल जाने की उम्र में कचड़े के ढेर में अपना जीवन खपा रहे हैं। न जाने कितने होटल में बर्तन धोते-खाना परोसते दिख जायेंगे। फैक्ट्रियों में प्रदूषण के बीच काम करते ये बच्चे दो जून की रोटी के लिए तरसते गम्भीर बीमारियों से लड़ते तिल-तिल मरने को मजबूर हंै। कहीं बच्चे पशु चरा रहे हैं तो कहीं बोझा ढो रहे हैं। कागजों पर हो रहे विकास के बीच इन बच्चों का विकास देखने वाला कोई नहीं।
आधा भारत आज भी गावों में बसता है। शहरों में भले ही मुठ्ठी भर लोगों की सोच में बदलाव आया है लेकिन गाँव की स्थिति इससे पूरी तरह अलग है। गावों में आज भी लड़कियों के लिए यह आम युगीन धारणा कायम है कि पत्नी और मां बनने के लिए शिक्षा की आवश्यकता नहीं है।
सरकार भले ही मुफ्त शिक्षा, भोजन, यूनिफार्म, कापी-किताब, सायकल आदि बाँटकर अपना और अपने पार्टी का नाम ऊँचा कर ले लेकिन गरीबों को यह सब भी महंगा लगता है। आज भी बड़ी संख्या में अनेक गाँव ऐसे हैं जहाँ बुनियादी शिक्षा की भी ठीक से व्यवस्था नहीं है। स्कूल है तो शिक्षक नहीं और शिक्षक हंै तो स्कूल की स्थिति अच्छी नहीं। हकीकत यही है इतने सालों बाद भी साक्षरता अभियान एक मजाक है।
हम साक्षरता को समझ ही नहीं पाए हैं। जब तक माता -पिता इस अभियान को नकारते हुए अपने बच्चों का स्कूल छुड़वाकर उन्हें मजदूरी या अन्य कामों पर भेजने को मजबूर रहेंगे,तब तक यह अभियान मजाक बनकर ही रहेगा।
साक्षरता और शिक्षा का लाभ जन-जन तक पहुंचाने के लिए आवश्यकता है, शिक्षा को जनमानस में उतारने की। 'शिक्षा से ही जीवन का समग्र विकास संभव है।' सचमुच अशिक्षा और गरीबी के दानव से समाज और राष्ट्र को बचाना है तो आवश्यकता है साक्षरता नामक दीप जलाने की जिससे ज्ञान और विकास का प्रकाश सर्वत्र फैल सके।