क्या जागरूकता अभियान से बदलाव आयेगा...?


आर.के. मिश्रा
पिछले कुछ वर्षों से हमारे देश में जागरूकता का प्रचलन काफी बढ़ गया है। देश की जनता को कभी किसी विषय पर तो कभी किसी मुद्दे पर जागरूक किया जा रहा है। जागरूकता के कुछ ताजा मामलों में आप शौचालय को ले सकते हैं। शौचालय का प्रयोग करें यह जागरूकता लाने के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकारें, स्वयंसेवी संगठन आदि व्यापक पैमाने पर अभियान चला रहे हैं। टीवी, अखबारों में करोड़ों रुपए के विज्ञापन चल रहे हैं। शहरों-गांव में बोर्ड और होर्डिंग्स लगाए जाते हैं। इसी प्रकार अब जब चुनाव का मौसम चल रहा है तो मतदाता जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। शासन-प्रशासन तो लोगों को मतदाता जागरूकता के लिए अभियान चला ही रहा है इसके अलावा कुछ समाजसेवी संगठन भी मतदाता जागरूकता अभियान चलाने में लगे हैं। स्वच्छता अभियान, 'स्वच्छ भारत मिशन' का तो आपको मालूम ही होगा। इस जागरूकता के लिए तो सैकड़ों करोड़ रुपए के विज्ञापन प्रतिदिन जारी होते रहते हैं। हमारे देश में इस तरह के जागरूकता अभियानों की लंबी फेहरिस्त है- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, सर्व शिक्षा अभियान, प्रौढ़ शिक्षा अभियान, प्रदूषण रोकने का जागरूकता अभियान, बीमारियों से बचाव के लिए जागरूकता अभियान, खाना खाने से पहले साबुन से हाथ धोने के लिए जागरूकता अभियान, पोस्टर- बैनर हटाओ आदि न जाने क्या-क्या जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं। यह भी दिलचस्प है कि सड़क पर कैसे चलें इसके लिए भी जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं। रांग साइड वाहन न चलायें, टू व्हीलर चालक हेलमेट लगायें, कार चालक सीट बेल्ट बांधें, रेड लाइट पर रुकें इत्यादि के लिए भी हमारे देश में जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं। इसमें कुछ अभियान जैसे बीमारियों के प्रति, रक्तदान के लिए, अंगदान जैसे मामलों में जागरूकता तो फिर भी ठीक है कि ग्रामीण जनता अथवा कुछ अन्य तबके के लोगों के लिए जरूरी हंै जिससे उन्हें जानकारी मिलेगी। लेकिन अब जबकि हम 21वीं सदी में हैं और अभी भी जिस देश के लोगों को स्वच्छता, शौचालय, साबुन से हाथ धोने, ट्रैफिक नियमों का पालन करने, चुनाव में मतदान जैसे मामलों की जानकारी नहीं है और यह सिखाने की अथवा जागरूकता की जरूरत पड़ती हो तो क्या यह हास्यास्पद नहीं लगता। इसके बावजूद हम दावा करते हैं कि भारत विश्व गुरु बनेगा। हम कहते हैं कि पिछले 50 वर्षों में चीन, जापान, कोरिया, इजराइल आदि विकसित और सशक्त राष्ट्र बन गए और हम इतना पीछे कैसे रह गए। तो इसका मुख्य कारण हमारे देश के लोगों की मानसिकता है, जो इन बातों को जानते हुए भी यदि पालन नहीं करना चाहते उसे जागरूकता अभियान चलाकर सिखाया जा रहा है और क्या आप समझते हैं कि वह इस से सीख जाएंगे। कुछ तथाकथित समाजसेवी तो सिर्फ अपनी पब्लिसिटी और अखबारों में छपने के लिए ही समय-समय पर जागरुकता अभियान के नाम पर औपचारिकता करते रहते हैं। क्योंकि उन्हें भी मालूम है कि कोई सुधरने वाला नहीं है। कुछ समाजसेवी जो एक दिन रांग साइड ट्रैफिक न चलाने का जागरूकता अभियान चला रहे होते हैं और दूसरे दिन वह स्वयं रांग साइड वाहन चलाते नजर आते हैं। अब इन जागरूकता अभियानों के बारे में स्वत: समझा जा सकता है।