चुनाव 2019

चुनाव में जाति धर्म आगे- सभी मुद्दे पीछे


 


आर.के. मिश्रा
            देश में लोकसभा चुनाव हो रहे हैं। मतदान के तीन चरण पूरे हो चुके हैं और चैथे चरण की तैयारियां हैं। सभी दलों के नेता भाषण, जनसभाएं, रोड शो, रैलियां करने में व्यस्त हैं। नेता अपने भाषणों में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने में लगे हैं। यहां तक कि एक दूसरे के ऊपर व्यक्तिगत हमले किए जा रहे हैं। नैतिकता का स्तर इतना गिर गया है कि कुछ नेता तो धमकी और गाली-गलौज भी कर रहे हैं। जनता से जुड़े मुद्दे बेरोजगारी, महंगाई, डीजल, पेट्रोल के बढ़ते दाम किसानों की समस्याएं, व्यापारियों की समस्याएं, सड़क, बिजली, पानी इत्यादि की तो कोई बात ही नहीं कर रहा। सारा चुनाव प्रचार सिर्फ जातिवाद, धर्म, हिंदू-मुसलमान आदि पर केंद्रित हो गया है। सभी नेता सिर्फ जाति धर्म के नाम पर वोटों का बंटवारा करके चुनाव जीतने की रणनीति पर कार्य कर रहे हैं। यहां तक कि अली और बजरंगबली को भी भाषणों में घसीट लिया है। कोई स्वयं को पिछड़ा बता रहा है तो कोई अति पिछड़ा, जनता से जुड़े मुद्दों की कोई बात ही नहीं हो रही है। नेताओं के भाषणों में विकास की कोई बात नहीं होती, जबकि वास्तविकता यह है कि जनता के बीच हिंदू मुसलमान में कोई बैर नहीं है न ही किसी को किसी से खतरा है। वर्षों से भारतीय समाज में हिंदू-मुसलमान सब रहते आए हैं और सौहार्द के साथ रह रहे हैं। जबकि नेता हिंदू मुसलमान में बांट कर चुनाव जीतने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। भारत का संविधान सभी धर्मों को समान अधिकार देता है। नेताओं के इस प्रकार हिंदू मुसलमान अथवा जातिवादी, क्षेत्रवादी, भाषणों पर चुनाव आयोग के द्वारा भी पर्याप्त कार्यवाही नहीं की जा रही है। कुछ मामलों में जरूर संकेतिक कार्यवाही की गई। अली-बजरंगबली वाले बयान को लेकर योगी आदित्यनाथ, मायावती पर दो-तीन दिनों तक प्रचार पर रोक लगी। इसी प्रकार आजम खान और नवजोत सिंह सिद्धू पर भी कार्यवाही की गई। जबकि भारतीय संविधान के आर्टिकल 324 के तहत चुनाव आयोग को अधिकार है कि यदि कोई नेता जाति धर्म का चुनाव प्रचार में प्रयोग करता है तो चुनाव आयोग उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगा सकता है, उसकी उम्मीदवारी निरस्त कर सकता है। लेकिन अभी तक ऐसी कार्यवाही किसी नेता पर नहीं हुई है। अधिकांश आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में देखा गया है कि चुनाव आयोग सिर्फ नोटिस जारी करता है। मजेदार बात यह भी है कि हमारे देश के मतदाता भी जाति और धर्म के आधार पर ही उम्मीदवार को वोट देने की चर्चाएं करते देखे जाते हैं। वास्तविकता यह है कि नेताओं के भाषण इसीलिए सिर्फ जाति धर्म पर ही केंद्रित होते हैं। इस पर सख्ती से रोक लगाई जानी चाहिए क्योंकि देश के लिए यह बेहद गंभीर और खतरनाक स्थिति है। जब तक चुनाव आयोग सख्त कार्यवाही नहीं करेगा तब तक यह सब रुकने वाला है, ऐसा नहीं लगता।